Sarkari school news today: सहायक अध्यापिका ने खुद अपनी बच्चियों का एडमिशन कराया सरकारी विद्यालय में हटकर मिसाल बनी वंदना
सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के बारे में लोगों के मन में एक नकारात्मक धारणा बन हुई है. लोगों का मानना है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती और शिक्षक स्कूलों में नियमित रूप से नहीं आते. इस धारण के चलते, पेरेंट्स अपने बच्चों को महंगी फीस वाले प्राइवेट स्कूलों में दाखिल करवाते हैं लेकिन प्रयागराज की एक शिक्षिका ने इस भ्रम को तोड़ दिया है.
इस शिक्षिका ने पेश की मिसाल
आज देश में शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है. प्राइवेट और सरकारी स्कूलों में जगह-जगह शिक्षकों को शिक्षा के क्षेत्र में दिए गई योगदान को लेकर उन्हें सम्मानित भी किया जा रहा है. इन्हीं शिक्षकों में शामिल एक ऐसी शिक्षिका हैं जो और शिक्षिकाओं के अपेक्षा थोड़ी अलग हैं. क्योंकि आज की मॉडर्न जिंदगी में हर कोई अपने बच्चों को अंग्रेजी और महंगे स्कूलों में पढ़ना चाहता है लेकिन यह प्रयागराज की ऐसी सरकारी स्कूल की शिक्षिका हैं जिनकी माली हालत भी अच्छी होने के बावजूद भी वे जिस प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका पद पर तैनात हैं उसी विद्यालय में अपनी तीनों बेटियों का भी एडमिशन करवा कर पढ़ा रही हैं।
कक्षा 8 और 7 में पढ़ती हैं बड़ी बेटिया
यूपी के प्रयागराज बहरिया ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय भवानीगढ़ में कार्यरत सहायक अध्यापक श्रीमती वंदना मौर्या की 3 बेटियां है और वंदना अपने ही स्कूल में तीनों को पढ़ती हैं. बड़ी बेटी व्याख्या मौर्या कक्षा 8, छोटी बेटी व्यंजना मौर्या कक्षा 7 में है. वंदना अपनी तीसरी सबसे छोटी बेटी उपाधि का भी कक्षा 1 में एडमिशन कराने वाली हैं।
वंदना मौर्या के मुताबिक, अगर अध्यापक अपने बच्चों को बेसिक स्तर पर अपने ही स्कूल में पढ़ाएं तो इससे वह सही संस्कार दे पाएंगे और इससे दूसरों को भी प्रेरणा मिलेगी. वंदना मौर्या अपने बच्चों के साथ अपनी कक्षा के बच्चों को भी, पज़ल, गेम, ब्लॉक्स व विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से रोचक तरीकों से पढ़ाती हैं. वह अपने बच्चों का जन्मदिन स्कूल में ही सभी बच्चों के साथ मनाती हैं और इसी स्कूल में पढ़ने वाले और बच्चों की जरूरतों को अपने पैसे से पूरा करती हैं.
अपनी मां को मानती है तीनों बेटियां आदर्श
यूपी के प्रयागराज बहरिया की रहने वाली वंदना मौर्या के पति रवि प्रकाश मौर्य काली खेती क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं. वंदना मौर्य अपने पति रवि प्रकाश मौर्य के काम में भी हाथ बटाती हैं. जब वंदना की बड़ी बेटी से पूछा गया क्या तुम महंगे और बड़े स्कूल में नहीं पढ़ना चाहतीं तो व्याख्या ने कहा है कि वह आगे पढ़-लिखकर अपनी मम्मी की तरह अध्यापक बनना चाहती हैं. व्याख्या को बच्चों के बीच पढ़ना-लिखना, खेलना और चित्र बनाना अच्छा लगता है.
बड़ी बेटी ने आगे कहा कि मेरी मम्मी ही मेरी आदर्श हैं. छोटी बेटी व्यंजना से जब पूछा कि क्या उसे शहर के अच्छे इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने की इच्छा नहीं होती? तो उसने जवाब दिया कि नहीं, मुझे मम्मी के साथ रहना अच्छा लगता है और मेरी मम्मी मुझे स्कूल और घर दोनों जगह सब कुछ पढ़ाती हैं. लेकिन आगे मैं बड़े स्कूल में पढ़ूंगी और मुझे वैज्ञानिक बनना है. वहीं, सबसे छोटी बेटी उपाधि का भी एडमिशन अब वंदना मौर्य इसी प्राथमिक विद्यालय क्लास वन में करवाने वाली हैं.
हाईकोर्ट का ये है आदेश
8 अगस्त 2015 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि राज्य के सभी सरकारी अधिकारियों को अपने बच्चों को प्राथमिक सरकारी स्कूलों में अनिवार्य रूप से पढ़ाना होगा. हाईकोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव को छह माह के भीतर यह सुनिश्चित करने को कहा था कि सरकारी, अर्ध सरकारी सेवकों, स्थानीय निकायों के जनप्रतिनिधियों, न्यायपालिका एवं सरकारी खजाने से वेतन, मानदेय या धन प्राप्त करने वाले लोगों के बच्चे अनिवार्य रूप से बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में पढ़ें।
ऐसा न करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाने का आदेश दिया था. यदि कोई कॉन्वेंट स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजे तो उस स्कूल में दी जाने वाली फीस के बराबर धनराशि उससे प्रतिमाह सरकारी खजाने में जमा कराई जाए. ऐसे लोगों की वेतनवृद्धि व प्रोन्नति कुछ समय के लिए रोकने की व्यवस्था हो. इस आदेश को 9 साल हो चुके हैं, लेकिन सरकार द्वारा इस पर कभी संज्ञान नहीं लिया गया.
सही मायनों में शिक्षक दिवस के अवसर पर उन शिक्षकों को सम्मानित करना चाहिए, जो अपने बच्चों को अपने स्कूल में स्वयं पढ़ाते हैं. इससे उन्हें प्रोत्साहन मिलेगा और दूसरों के लिए मिसाल भी बनेंगे. अक्सर देखा गया है कि नामी अध्यापक व बड़े सम्मान पाने वाले शिक्षक भी अपने बच्चों को कान्वेंट में ही पढ़ाते हैं. आज शिक्षक दिवस पर सम्मानित होने वाले शिक्षकों की सूची पर गौर करें तो इसकी स्वतः पुष्टि हो जाएगी, लगभग सबके बच्चे अंग्रेजी स्कूलों में ही पढ़ते हैं. सरकारी स्कूलों की गिरती दशा का एक मुख्य कारण ये भी है।